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झुक रही है भूमि बाईं ओर, फ़िर भी
कौन जाने?
नियति की आँखें बचाकर,
आज धारा दाहिने बह जाए।

जाने
किस किरण-शर के वरद आघात से
निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का,
कब रँग उठे।
सहसा मुखर हो
मूक क्या कह जाए?

सम्भव क्या नहीं है आज-
लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की,
कर रही है प्रेरणा,
यह प्रश्न अंकित?

कौन जाने
आज ही नि:शेष हों सारे
सँजोये स्वप्न,
दिन की सिध्दियों में
कौन जाने
शेष फिर भी,
एक नूतन स्वप्न की सम्भावना रह जाए।

-  बालकृष्ण राव


शर=  बाण, तीर, बरछी या भाले का फल की परिभाषा.

निर्वर्ण = अवर्णी, वर्णनहीन, अवर्णक, रंगहीन.

मुखर = वाचाल, वाक्‌पटु, बातूनी.

लोहित =  रक्त, लाल (विस्तार में अर्थ यहाँ पढ़ें)

प्राची =  पूर्व दिशा, पूरब.

निःशेष =  जिसका कुछ भी अंश बाकी न बचा हो। जिसका कुछ भी न रह गया हो। पूरा; समूचा; पूरी तरह से समाप्त या सम्पन्न किया हुआ काम.

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