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काशीपते करुणया जगदेतदेक-

स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥

हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत् की उत्पति, पालन और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एक मात्र स्वामी हो ||

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