#ahmad faraz

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती

ये खज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिले

अब के हम बिछड़े…तू खुदा है, न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा

दोनों इन्सां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिले

अब के हम बिछड़े…

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो

नशा बढ़ता है शराबे जो शराबों में मिले

अब के हम बिछड़े…

अब न मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़

जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिले

अब के हम बिछड़े…

― Ahmed Faraz 


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