#hindi literature

LIVE

..

इस तरह मैंने तुम्हारी कल्पना की
ताकि दुख से उबरने के लिए
प्रार्थनाएँ न करनी पड़ें
मैंने तुम्हारी कल्पना की
ताकि नींद के लिए
अँधेरे की कामना न करनी पड़े

मैंने तुम्हारी कल्पना की
ताकि तुम्हें देखने के लिए
फिर से कल्पना न करनी पड़े।

कुछ लोगों के नामो का उल्लेख किया गया था जिनके ओहदे थे
बाकी सब इत्यादि थे
इत्यादि तादात में हमेशा ही ज्यादा होते थे
इत्यादि भाव ताव कर के सब्जी खरीदते थे और खाना वाना खा कर
खास लोगों के भाषण सुनने जाते थे
इत्यादि हर गोष्ठियों में उपस्थिति बढ़ाते थे
इत्यादि जुलूस में जाते थे तख्तियां उठाते थे नारे लगाते थे
इत्यादि लम्बी लाइनों में लग कर मतदान करते थे
उन्हें लगातार ऐसा भ्रम दिया गया था कि वो ही
इस लोकतंत्र में सरकार बनाते थे
इत्यादि हमेशा ही आन्दोलनों में शामिल होते थे
इसलिए कभी कभी पुलिस की गोली से मार दिए जाते थे।
जब वे पुलिस की गोली से मार दिए जाते थे
तब उनके वो नाम भी हमें बतलाये जाते थे
जो स्कूल में भरती करवाते समय रखे गए थे
या जिससे उनमे से कुछ पगार पाते थे
कुछ तो ऐसी दुर्घटना में भी इत्यादि रह जाते थे।
इत्यादि यूँ तो हर जोखिम से डरते थे
लेकिन कभी - कभी जब वो डरना छोड़ देते थे
तो बाकी सब उनसे डरने लगते थे।
इत्यादि ही करने को वो सारे काम करते थे
जिनसे देश और दुनिया चलती थी
हालाँकि उन्हें ऐसा लगता था कि वो ये सारे काम
सिर्फ अपना परिवार चलाने को करते हैं
इत्यादि हर जगह शामिल थे पर उनके नाम कहीं भी
शामिल नहीं हो पाते थे।
इत्यादि बस कुछ सिरफिरे कवियों की कविता में
अक्सर दिख जाते थे।

आना - केदारनाथ सिंह


आना

जब समय मिले

जब समय न मिले

तब भी आना


आना

जैसे हाथों में

आता है जाँगर

जैसे धमनियों में

आता है रक्त

जैसे चूल्हों में

धीरे-धीरे आती है आँच

आना


आना जैसे बारिश के बाद

बबूल में आ जाते हैं

नए-नए काँटे


दिनों को

चीरते-फाड़ते

और वादों की धज्जियाँ उड़ाते हुए


आना

आना जैसे मंगल के बाद

चला आता है बुध

आना

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

भाग लगे इस आँगन को

बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।

मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।

देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।

जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।

जिस सावन में पिया घर नाहि, आग लगे उस सावन को।

अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ

तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

~ अमीर खुसरो

मेरी प्रिय सखी,

जानता हु नाराज हो तुम मुझसे और होना भी चाहिए, मैं हु ही इसी लायक शायद, वक़्त जो नहीं दे पाता तुम्हें पहले जैसे…

तुम्हारी गलती नही है की तुमने एक ऐसे शख्स से मोहब्बत कर ली, जिसे तुम्हारी बहुत फिक्र है..पर जताना नही आता

वो शख्स जो कभी भी तुम्हारे बुलाने पर समय पर नहीं आता… जो तुम्हारे दोस्तों को थोड़ा भी नही सुहाता..

जिसे पता है कि तुम कभी कभी बहुत छोटा महसूस करती हो पर उसे चीज़ों को बड़ा बनाना नहीं आता..

एक ही बार रोया था जो खुलकर तुम्हारे सामने

वो ही लड़का जिसे तुम्हारे सामने दर्द छुपाना नही आता

जानती हो तुम तो सबकुछ पर समझ नही पाती

गलती तुम्हारी नहीं हैं, शायद मुझे ही समझाना नहीं आता

तुमसे प्यार होने से पहले ही बहुत कुछ हो चुका है ज़िंदगी मे…मेरी जिम्मेदारियों ने मुझे छोटी सी उम्र में बहुत कुछ सीखा दिया है, और तुमसे इसीलिए बहुत प्यार है क्योंकि वो खोया हुआ बचपन लायी हो तुम मेरी उदासीन ज़िन्दगी में।

तुम शिकायते बहुत करती हो हर वक़्त पर मुझे वो भी मंजूर है..शायद हमारे प्यार का असली सार ही इन शिकायतों मे है

बस थोड़ा वक्त दे दो मुझे क्योंकि तुम्हारा प्रेमी होने से पहले मैं एक बेटा, भाई, दोस्त ओर बहुत कुछ हु जिसके होने के मायने इस जन्म में समझाना मुश्किल है

ये सब कहूंगा तो रो दोगी तुम ओर फिर में पूरी रात सो नही पाऊंगा, और सुबह फिर से हज़ारों काम है..

तो बस मान जाओ यार सच मे बहुत प्यार है तुमसे…..


तुम्हारा पर जो सिर्फ तुम्हारा नहीं हो सकता

दिल दुखता तो है, पर काश मुझे किसी का दिल दुखाना आता।।

मेह

है उड़ते पंछी की छांव तू , बेपरवाह बहती सी नाव तू

कैसे अपनाए है तू एक घर ?, है बंजारों का गांव तू

~मेह

loading